जिनकी इन्द्रियाँ और मन वश में नहीं है
जो भोगो में आसक्त है, वे सब परमात्मतत्व की तरफ से सोये हुए है | परमात्मा क्या
है ? तत्वज्ञान क्या है ? हम दुःख क्यों पा रहे है ? संताप जलन क्यों हो रही है ?
हम जो कुछ कर रहे है उसका परिणाम क्या होगा ?
इस तरफ बिलकुल न देखना ही उनकी रात है,
उनके लिए बिलकुल अँधेरा है |
में, सुख आराम में, भोगो
और संग्रह में, धन कमाने में ही लगे हुए है उन मनुष्यों की गणना भी पशु पक्षी आदि
में ही है | कारण की परमात्मतत्व से विमुख रहने में पशु पक्षी आदि में और मनुष्य
में कोई अंतर नहीं है | दोनों ही परमात्मतत्व की तरफ से सोये हुए है हाँ अगर कोई
अंतर है तो वह यह है कि पशु पक्षी आदि में विवेक शक्ति इतनी जाग्रत नहीं होती है,
इसलिए वो खाने पीने आदि में ही लगे रहते है और मनुष्यों में भगवन कि कृपा से वह
विवेक शक्ति जाग्रत है जिससे वह अपना कल्याण कर सके | प्राणीमात्र कि सेवा कर सके
| परमात्मा कि प्राप्ति कर सके | परन्तु उस विवेक शक्ति का दुरूपयोग करके मनुष्य
पदार्थो का संग्रह करने में एवं उनका भोग करने में लग जाते है जिससे वे संसार के
लिए पशुओ से भी अधिक दुःखदाई हो जाते है
कारण कि पशु तो जितने से पेट भर जाये उतना
ही खाते है , संग्रह नहीं करते; परन्तु मनुष्य को कही भी जो भी कुछ पदार्थ आदि मिल
जाता है, वह उसके काम में आये चाहे न आये, उसका तो वह संग्रह कर ही लेता है और
दूसरों के काम में आने में बाधा डाल देता है |
जिन सांसारिक पदार्थो का भोग और संग्रह
करने में मनुष्य अपने को बड़ा बुद्धिमान , चतुर मानते है और उसी में खुश होते है
संसार और परमात्मतत्व को जानने वाले
मननशील संयमी मनुष्य कि दृष्टि में वह सब रात के समान है ; बिलकुल अँधेरा है |
जैसे बच्चे खेलते है तो वे कंकड पत्थर,
कांच के लाल पीले टुकडो को लेकर आपस में लड़ते है | अगर वह मिल जाता है तो खुश होते
है कि मैंने बहुत बड़ा लाभ उठा लिया और अगर वह नहीं मिलता है तो दुखी हो जाते है कि
मेरी बड़ी हानि हो गयी | परन्तु जिसके मन में कंकड पत्थर आदि का महत्व नहीं है ,
ऐसा समझदार व्यक्ति समझता है कि इन कंकड पत्थरो के मिलने से क्या लाभ हुआ और न
मिलने से क्या हानि हुई |