अर्जुन अपने कुटुम्बियो को मारने कि बात
सोच कर शोक कर रहे है और दूसरी तरफ पंडितो (ज्ञानी) जैसे धर्म कि बाते भी कर रहे है
| तब भगवन कहते है एक तरफ तो तू पंडिताई कि बाते बघार रहा है और दूसरी तरफ शोक भी
कर रहा है वास्तव में तू केवल बाते बनाता है तू पंडित नहीं है क्योंकि जो पंडित (ज्ञानी) होते है वे किसी के लिए भी कभी शोक नहीं करते |
सबके प्राण का वियोग (त्याग) अवश्यम्भावी
(हर हाल में होना) है उनमे से किसी के प्राण का वियोग हो गया है और किसी का होने
वाला है अतः उनके लिए शोक नहीं करना चाहिए तुमने जो शोक किया ये तुम्हारी गलती है
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जो मर गये है , उनके लिए शोक करना तो
महान गलती है कारण कि मरे हुए प्राणियों के लिए शोक करने से उन प्राणियों को दुःख
भोगना पड़ता है| जैसे मृतात्मा के लिए जो पिंड और जल दिया जाता है , बह उसको परलोक
में मिल जाता है ऐसे ही मृतात्मा के लिए जो आंसू बहाए जाते है बे मृतात्मा को परवश
होकर पीने पड़ते है (स्कन्दपुराण) जो अभी जी रहे है उनके लिए भी शोक या चिंता नहीं
करनी चाहिए | उनका तो पालन पोषण करना चाहिए, प्रबंध करना चाहिए | उनकी क्या दशा
होगी भरण पोषण कैसे होगा ! उनकी सहायता कौन करेगा ! आदि चिंता शोक कभी नहीं करने
चाहिए क्योकि चिंता शोक करने में सिर्फ मोह और मूर्खता ही कारण है उसका कोई लाभ नहीं (“अशोच्यांनन्वशोचसत्वम्” - गीता
२:११)