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Thursday, February 28, 2013

कामना का चक्र और दुःख .....


कामना को पूरा होने को मनुष्य ने सुख मान लिया है जो की वाकई सुख है ही नहीं ...... मनुष्य इस भ्रम में है कि कामना पूरी होने से सुख होता है जबकि कामना सिर्फ और सिर्फ बढने के लिए ही पैदा होती है न कि सुख देने के लिए ....... मनुष्य सांसारिक बस्तुओ कि कामना करता है और कामना करने के बाद जब बह बस्तु प्राप्त होती है तब मन में स्थित कामना निकलने के बाद ( दूसरी कामना पैदा होने से पहले ) उसकी अबस्था निष्काम कि होती है और उसी निष्कामता का उसे सुख होता है निष्कामता अर्थात किसी भी कामना का न होना......
परन्तु उस सुख को मनुष्य भूल से सांसारिक बस्तु कि प्राप्ति से उत्पन्न हुआ मान लेता है जो कि सर्बथा है ही नहीं ..... अगर बस्तु कि प्राप्ति से सुख होता , तो उसके मिलने के बाद उस बस्तु के रहते हुए सदा सुख रहता | दुःख कभी होता ही नहीं और पुनः बस्तु कि कामना उत्पन न होती |
इसलिए सुख तो केबल कामना रहित होने का है जिसे मनुष्य ने भूल से सांसारिक बस्तु कि प्राप्ति से मान रखा है ..... और यही दुःख का कारण है ......

Wednesday, February 27, 2013

दुःख और सुख ...... कारण ?

संसार मात्र में दो चीजे है जो दुःख और सुख को निर्धारित करती है  करना और होना...... करना अर्थात कर्म और होना अर्थात उसका परिणाम ...... इसलिए गीता में कहा गया है करने में साबधान और होने में प्रसन रहो........ करने में साबधान नहीं रहते और होने में शोक करते हो ......... यही दुखो का कारण है जो करने में 
साबधान और होने में प्रसन्न रहता है वही साधक है ......

 इस के अतिरिक्त चाहत अर्थात कामना दुखो का कारण बनती है ........ जो चाहते है वो न मिले और जो नहीं चाहते है वो मिल जाये तो दुःख होता है अगर इन सब में से चाहत निकाल दी जाये तो दुःख है ही कहाँ ...... अर्थात कामना भी दुःख का कारण है ...... 

Tuesday, February 26, 2013

सुख और दुःख ..... आखिर क्यों ...

मनुष्य के सामने जन्मना मरना लाभ , हानि आदि के रूप में जो परिस्थति आती है बह प्रारब्ध का अर्थात आपने किये हुए कर्मो का फल है उस अनुकूल प्रतिकूल परिस्थितियों को लेकर शोक करना सुखी दुखी होना केवल मूर्खता ही है | कारण की परिस्थति चाहे अनुकूल आये या प्रतिकूल आये उसका आरम्भ और अंत होता है अर्थात बह परिस्थति पहले भी नहीं थी और अंत में भी नहीं रहेगी जो परिस्थति आदि और अंत में नहीं होती बह बीच में एक पल भी स्थायी नहीं होती अगर स्थ्याई होती तो मिटती कैसे ? और मिटती है तो स्थायी कैसे ? ऐसी प्रतिपल मिटने वाली अनुकूल प्रतिकूल परिस्थति को लेकर शोक करना , हर्ष करना , सुखी दुखी होना केवल मूर्खता ही तो है .......