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Tuesday, February 26, 2013

सुख और दुःख ..... आखिर क्यों ...

मनुष्य के सामने जन्मना मरना लाभ , हानि आदि के रूप में जो परिस्थति आती है बह प्रारब्ध का अर्थात आपने किये हुए कर्मो का फल है उस अनुकूल प्रतिकूल परिस्थितियों को लेकर शोक करना सुखी दुखी होना केवल मूर्खता ही है | कारण की परिस्थति चाहे अनुकूल आये या प्रतिकूल आये उसका आरम्भ और अंत होता है अर्थात बह परिस्थति पहले भी नहीं थी और अंत में भी नहीं रहेगी जो परिस्थति आदि और अंत में नहीं होती बह बीच में एक पल भी स्थायी नहीं होती अगर स्थ्याई होती तो मिटती कैसे ? और मिटती है तो स्थायी कैसे ? ऐसी प्रतिपल मिटने वाली अनुकूल प्रतिकूल परिस्थति को लेकर शोक करना , हर्ष करना , सुखी दुखी होना केवल मूर्खता ही तो है .......

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