संसार मात्र में दो चीजे है जो दुःख और सुख को निर्धारित करती है करना और होना...... करना अर्थात कर्म और होना अर्थात उसका परिणाम ...... इसलिए गीता में कहा गया है करने में साबधान और होने में प्रसन रहो........ करने में साबधान नहीं रहते और होने में शोक करते हो ......... यही दुखो का कारण है जो करने में
साबधान और होने में प्रसन्न रहता है वही साधक है ......
इस के अतिरिक्त चाहत अर्थात कामना दुखो का कारण बनती है ........ जो चाहते है वो न मिले और जो नहीं चाहते है वो मिल जाये तो दुःख होता है अगर इन सब में से चाहत निकाल दी जाये तो दुःख है ही कहाँ ...... अर्थात कामना भी दुःख का कारण है ......
साबधान और होने में प्रसन्न रहता है वही साधक है ......
इस के अतिरिक्त चाहत अर्थात कामना दुखो का कारण बनती है ........ जो चाहते है वो न मिले और जो नहीं चाहते है वो मिल जाये तो दुःख होता है अगर इन सब में से चाहत निकाल दी जाये तो दुःख है ही कहाँ ...... अर्थात कामना भी दुःख का कारण है ......
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