जो सब जगह स्नेहरहित है अर्थात जिसकी
अपने कहलाने वाले शरीर, इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि. स्त्री, पुत्र, घर, धन, आदि किसी
में भी आसक्ति, लगाव, मोह नहीं रहा है | वो मनुष्य स्थिर बुद्धि कहलाता है |
वस्तु आदि के बने रहने से मैं बना रहा
और और उनके बिगड़ जाने से मैं मारा गया, मेरा सब कुछ चला गया , धन के आने से मैं
बड़ा हो गया और धन के जाने से मैं लुट गया – यह जो वस्तु आदि में एकात्मा स्नेह है
, उसका नाम अभिस्नेह है | स्थिर बुद्धि कर्मयोगी का किसी भी वस्तु आदि में यह अभिस्नेह
बिलकुल नहीं रहता | बाहर से वस्तु, व्यक्ति, पदार्थ आदि का सयोंग रहते हुए भी वह
भीतर से बिलकुल निर्लिप्त रहता है |
अनुकूल परिस्थति को लेकर मन में प्रसन्नता आती है और वाणी से भी प्रसन्नता प्रकट की जाती है तथा बाहर से भी उत्सव
मनाया जाता है – यह उस परिस्थति का अभिनन्दन करना अर्थात उस परिस्थति में खुश होना,
उसमे लिप्त होना, उसको अपना मान कर उसके साथ सयोंग करना हुआ | ऐसे ही प्रतिकूल
परिस्थति को लेकर मन में जो दुःख होता है , खिन्नता होती है , कि ये क्यों और कैसे
हो गया यह नहीं होता तो अच्छा था , अब यह जल्दी मिट जाये तो ठीक है – ये उस
परिस्थति में शोक करना हुआ | इसमें भी उस परिस्थति को अपना मानकर उसमे लिप्त होना
और उससे संयोग करके अपना सम्बन्ध जोड़ना हुआ | जबकि सर्वथा निर्लिप्त हुआ स्नेहरहित
कर्मयोगी अनुकूलता को लेकर प्रसन्न नहीं होता और प्रतिकूलता को लेकर शोक नहीं करता
| तात्पर्य ये है की उसको अनुकूल प्रतिकूल , अच्छे – मंदे अवसर प्राप्त होते रहते
है, पर उसके भीतर सदा निर्लिप्तता बनी रहती है | यही स्थिर बुद्धि है |
उसकी बुद्धि में यह विवेक पूर्णरूप से
जाग्रत हो गया है कि संसार में अच्छे – मंदे के साथ वास्तव में मेरा कोई सम्बन्ध
है ही नहीं | कारण कि ये अच्छे – मंदे अवसर तो बदलने वाले है, पर मेरा स्वरुप न
बदलने वाला है | अतः न बदलने वाले के साथ बदलने वाले का सम्बन्ध कैसे हो सकता है ?
किसी कि बुद्धि कितनी ही तेज क्यों न हो
और वह अपनी बुद्धि से परमात्मा के विषय में कितना ही विचार क्यों न करता हो, पर वह
परमात्मा को अपनी बुद्धि के अंतर्गत नहीं ला सकता | कारण कि बुद्धि सीमित है और
परमात्मा असीम अनन्त है | परन्तु उस असीम परमात्मा में जब बुद्धि लीन हो जाती है ,
तब उस सीमित बुद्धि में परमात्मा के सिवाय दूसरी कोई सत्ता ही नहीं रहती | इसलिए स्थिर
बुद्धि में परमात्मा के सिवाय दूसरी कोई सत्ता नहीं रहती |
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