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Thursday, July 31, 2014

स्थिर बुद्धि लक्षण २....

दु:खो कि सम्भावना और उनकी प्राप्ति होने पर जिसके मन में विचलन नही होता अर्थात कर्तव्य कर्म करते समय कर्म करने में बाधा लग जाना , निंदा अपमान होना , कर्म का फल प्रतिकूल होना आदि आदि प्रतिकूलताँए आने पर उसका मन विचलित नहीं होता |

कर्मयोगी के मन हलचल , विचलन न होने का कारण ये है कि उसका मुख्य कर्तव्य होता है दुसरो के हित के लिए कर्म करना, कर्म के फल में कही आसक्ति, ममता, कामना न हो जाये—इस विषय में सावधान रहना | ऐसा करने से उसके मन में एक प्रसन्नता रहती है इसी प्रसन्नता के कारण कितनी हे प्रतिकूलताएँ आने के बाद भी उसका मन विचलित नहीं होता |


संसार के पदार्थो का मन पर जो रंग चढ़  जाता है उसको राग अर्थात मोह कहते है पदार्थो में राग होने पर अगर कोई अपने से ज्यादा ताकतवर व्यक्ति उन पदार्थो का नाश करता है या उनसे दूर करता है तो मन में ‘भय’ होता है | अगर व्यक्ति निर्बल होता है तो मन में ‘क्रोध’ होता है | परन्तु जिसके भीतर दूसरों को सुख पहुचानें , उनका हित करने का , उनकी सेवा करने का भाव जाग्रत् हो जाता है, उसका राग स्वाभाविक मिट जाता है | राग के मिटने से भय और क्रोध भी नहीं रहते | अतः राग, भय और क्रोध से सर्वथा रहित हो जाता है |

कामना , वासना , आसक्ति, प्रियता, मोह क्या है ? मेरे को वस्तु मिल जाये ऐसी जो इच्छा होती है उसका नाम “कामना” है | कामना पूरी होने कि जो सम्भावना है उसका नाम “आशा” है | कामना पूरी होने के बाद भी पदार्थो के बढ़ने की तथा पदार्थो के और मिलने की जो इच्छा होती है, उसका नाम “लोभ” है | लोभ कि मात्रा अधिक बढ़ जाने का नाम “तृष्णा” है | 

तात्पर्य ये है कि उत्पत्ति और विनाशशील पदार्थो में जो खिंचाव जो मोह है उसी को वासना कामना आदि नामों से कहते है |

इसलिए भगवान कहते है कि जो दुःख और सुख की हलचल से रहित है जो आसक्ति से मोह से रहित है जिसके मन में भय या क्रोध नहीं है ऐसा मननशील मनुष्य स्थिर बुद्धि कहलाता है |

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