कामना को पूरा होने को मनुष्य ने सुख मान लिया है
जो की वाकई सुख है ही नहीं ...... मनुष्य इस भ्रम में है कि कामना पूरी होने से
सुख होता है जबकि कामना सिर्फ और सिर्फ बढने के लिए ही पैदा होती है न कि सुख देने
के लिए ....... मनुष्य सांसारिक बस्तुओ कि कामना करता है और कामना करने के बाद जब
बह बस्तु प्राप्त होती है तब मन में स्थित कामना निकलने के बाद ( दूसरी कामना पैदा
होने से पहले ) उसकी अबस्था निष्काम कि होती है और उसी निष्कामता का उसे सुख होता
है निष्कामता अर्थात किसी भी कामना का न होना......
परन्तु उस सुख को मनुष्य भूल से सांसारिक बस्तु
कि प्राप्ति से उत्पन्न हुआ मान लेता है जो कि सर्बथा है ही नहीं ..... अगर बस्तु
कि प्राप्ति से सुख होता , तो उसके मिलने के बाद उस बस्तु के रहते हुए सदा सुख
रहता | दुःख कभी होता ही नहीं और पुनः बस्तु कि कामना उत्पन न होती |
इसलिए सुख तो केबल कामना रहित होने का है जिसे
मनुष्य ने भूल से सांसारिक बस्तु कि प्राप्ति से मान रखा है ..... और यही दुःख का
कारण है ......
nice....
ReplyDeletePhir sukh kya hai kyu loog moh maya me khoye hue hai aur kyu aaj Paisa sukh ka dusra naam ban gaya hai
ReplyDeleteबन गया नहीं है बना दिया गया है कुछ लोगो ने बना दिया और बचे हुए लोगो ने उसे अपना लिया | फिर तुम स्वतंत्र कहाँ रहे .... तुमने उनके विचारों को ही तो अपना लिया.... इसमें तुम्हारा अपना विवेक कहाँ है ... तुम अनुयायी (Follower)ही तो बने , सच का नेतृत्व(Lead) तुमने किया ही नहीं | विचार करो...
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