SHOP NOW

Friday, July 18, 2014

समता क्या है.....

समता दो तरह की होती है – अन्तःकरण की समता और स्वरुप की समता | समरूप परमात्मा सब जगह परिपूर्ण है उस समरूप परमात्मा में जो स्थित हो गया, उसने संसारमात्र पर विजय प्राप्त कर ली ,वह जीवन्मुक्त हो गया | परन्तु इसकी पहचान अन्तःकरण की समता से होती है |
(गीता ५:१९)

अन्तःकरण की समता है – सिद्धि असिद्धि में सम रहना | अर्थात किसी भी स्थिति में मन को शांत रखना, समान रखना | प्रसंशा हो जाये अथवा निंदा हो जाये, कार्य सफल हो जाये या असफल हो जाये, लाखो रुपए आ जाये या लाखो रूपए चले जाये पर उससे अन्तःकरण में कोई हलचल न हो | सुख दुःख , हर्ष शोक आदि न हो | मन विचलित न हो |

इस समता का कभी नाश नहीं होता | कल्याण के सिवा इस समता का दूसरा कोई फल होता ही नहीं | जन्म- मरणरूपी महान भय से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति हे इस समता का फल है |

मनुष्य तप, दान, तीर्थ, व्रत, आदि कोई भी पुण्य कर्म करे , वह फल देकर नष्ट हो जाता है ; परन्तु साधन करते करते अन्तःकरण में थोड़ी से से भी समता आ जाये तो वह नष्ट नहीं होती, बल्कि कल्याण कर देती है , साधन में समता जितनी ऊँची चीज है, मन की एकाग्रता उतनी ऊँची चीज नहीं है | मन एकाग्र होने से सिद्धिया तो प्राप्त हो जाती है , पर कल्याण नहीं होता | परन्तु समता आने से मनुष्य संसार बंधन से सुखपूर्वक मुक्त हो जाता है | (गीता ५:३)

No comments:

Post a Comment