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Tuesday, July 29, 2014

स्थिर बुद्धि लक्षण १ ...

जब भगवन अर्जुन से यह कहते है की जब तेरी बुद्धि मोह रूपी दलदल से तर जायेगी तो तू योग को प्राप्त हो जायेगा | तब अर्जुन के मन में शंका होती है कि जब मैं योग को प्राप्त हो जाऊंगा स्थितप्रग हो जाऊंगा तब मेरे क्या लक्षण होंगे? इसीलिए वो भगवन से पूछ लेते है कि स्थिर बुद्धि मनुष्य के क्या लक्षण होते है ?

तब भगवन कहते है मनुष्य जिस काल में मन कि सभी कामनाओ का त्याग करदेता है और अपने आप में ही संतुष्ट हो जाता है तब वह स्थिर बुद्धि कहलाता है



कामना न तो स्वयं में है और न मन में ही है | कामना तो आने जाने वाली है और स्वयं निरंतर रहने वाला है ; अतः स्वयं में कामना कैसे हो सकती है मन एक करण है और उसमे भी कामना निरंतर नहीं रहती बल्कि आती जाती रहती है |

साधक तो बुद्धि को स्थिर बनाता है परन्तु कामनाओ सर्वथा त्याग होने पर बुद्धि को स्थिर बनाना नहीं पड़ता, वह स्वतः स्वाभिक स्थिर हो जाती है |
जिसका उद्देश्य परमात्मा का है उसकी बुद्धि एक निश्चय वाली होती है ; क्योकि परमात्मा भी एक ही है | परन्तु जिसका उद्देश्य संसार का होता है उसकी बुद्धि असंख्य कामनाओ वाली होती है क्योकि सांसारिक वस्तुए असंख्य है  (गीता २:४१)


समता कि प्राप्ति के लिए बुद्धि की स्थिरता बहुत आवश्यक है कारण कि कल्याण के लिए मन की स्थिरता का उतना महत्व नहीं है जितना बुद्धि की स्थिरता का महत्व है | कर्मयोग में बुद्धि की स्थिरता ही मुख्य है अगर मन की स्थिरता होगी तो कर्मयोगी कर्म कैसे करेगा? कारण कि मन कि स्थिरता होने पर बाहरी क्रियाए रुक जाती है | भगवान भी योग (समता) में स्थित होकर कर्म करने कि आज्ञा देते है –‘योगस्थ: कुरु कर्मणि’

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